मैं भीड़ तो नहीं
मैं भीड़ तो नहीं
मैं इस भीड़ का हिस्सा हूँ
पर मैं भीड़ तो नहीं !
हर रोज़ निकलता हूँ
मंज़िल की तलाश में
इस सोच से के इक दिन तो
वह ज़रूर मिलेगी !
कभी ख़ुशी खभी ग़म
कभी आंसूं कभी हसी
चलता रहता हैं बस यही
पर मैं हार मानता नहीं
और कोशिश रहती है जारी
के इक दिन तो मिलेगी मंज़िल कभी !
जब भी लगता है कभी
इस भरी भीड़ में खो न जाऊँ कहीं
याद दिलाता हूँ खुद को यहीं
मैं इस भीड़ का हिस्सा हूँ
पर मैं भीड़ तो नहीं।