"मैं और मेरे अहसास"
"मैं और मेरे अहसास"
जब टूटने लगूं मैं कभी,
जब छूटने लगूं मैं कहीं,
जब तन्हाई में रहने लगूं,
जब हालातों से परेशान रहूँ,
जब मैं मुश्किल से घबरा जाऊं,
जब खुद से खफ़ा मैं हो जाऊँ,
जब खोया रहूँ ख्यालों में,
जब उलझा रहूँ सवालों में,
जब डर जाऊँ मैं ख्वाबों में,
जब चुप्पी मिले जवाबों में,
जब रहे ना हर्सोल्लास कोई,
जब अपना रहे ना खास कोई,
जब बाकी रहे ना आस कोई,
जब बचे ना मुझमें अहसास कोई,
जब अंधेरा गहराने लगे,
जब खुद परछाईं मेरी डराने लगे,
तुम मत देना फिर साथ मेरा,
तुम नहीं थामना हाथ मेरा,
तुम मेरे सभी अंधेरों से,
मुझको खुद से ही लड़ने देना,
लिखा है जो मैनें खुद से ही,
खुद मुझको ही तुम पढ़ने देना,
मत पोंछ्ना आँसू तुम,
ना कोई मुझे दिलासा देना,
जो कर सको अगर तुम इतना,
तो बस तुम इतना कर देना,
मुझको बस याद दिलाना तुम,
कौन हूँ मैं, और क्या मैं तन्हा कर सकता हूँ,
'रवि' बनकर फिर से मैं, अंधेरों से लड़ सकता हूँ,
याद दिलाना मुझको तुम, मैं फिर गिरकर उठ सकता हूँ,
जो मैं पहले मस्त मलंग था, फिर से वो बन सकता हूँ,
फिर भर देना सांसें मुझमें, फिर से मुझे जिला देना,
खो जाऊँ गर खुद से मैं तो, खुद से मुझे मिला देना।