STORYMIRROR

Sangeeta Tiwari

Abstract

4  

Sangeeta Tiwari

Abstract

मैं आत्मा हूं

मैं आत्मा हूं

1 min
303


मैं थी, मैं हूं, मैं रहूंगी, जग में रूप मेरा अमर।।          

हिंदू धर्म की मान्यता अनुसार, मात्र शरीर जाता है मर।। 

यूं तो हूं मैं इक शक्ति, दृश्य ना कोई मेरा पाया।।        

बनकर हवा में वहां समाई, जहां मनुष्य जन्म है पाया।।   


उत्पन्न नहीं हुआ बल कोई , कर डाले जो मेरा खात्मा।।  

न छल से मरूं,न बल से डरूं, हु मैं सनातन इक आत्मा।।  

पृष्ठों में भगवत गीता के, पूर्ण लिखा है मेरा सार।।       

प्रत्येक शरीर में टिकी हुई हूं, बन जीवन का मात्र आधार।  


बनकर जैसे पंछी कोई, फुर से

मैं हूं उड़ जाती।।      

कर परित्याग मैं इक तन का, प्रवेश दूजे में कर जाती।।   

मनुष्य जहां नित्य एक वस्त्र में, रह पाए न कोई कारण।   

त्याग वृद्ध तन उसी प्रकार, नवीन शरीर में करती धारण।  


मेरी उपस्थिति से संभव है, प्राणी का आगामी सवेरा।     

जीवन डोर वहां तक संभव, डालूं जहां तक मैं डेरा।।     

देवे दाता हुक्म जहां पर, झटपट होता है मुझे निभाना।   

करता स्थान पर निर्धारित, जन्म कहां है मुझको पाना।।

कहलाया जो सृष्टि संचालक, किया जिसने मेरा निर्माण।।  

अंश उपस्थिति मुझे में उसका, मिले हैं इसके अनेक प्रमाण।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract