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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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मैं आग हूँ

मैं आग हूँ

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मैं आग हूँ ••••••••••••••••• मेरी आवाज़ सुनो न सुनो पर किसी भ्रम में न रहो, मुझे दबाने का दिवास्वप्न शौक से देखो। पर हर कोशिश के बाद हार जाओगे, मुझे दबाने की हर कोशिश के बाद  सिर्फ मुँह की खाओगे। क्योंकि मैं महज आवाज नहीं  अंगार हूँ, जल जाओगे। मुझे रोक सकते हो तो रोक कर भी देख लो अनदेखा करने का भी प्रयास कर लो तुम कहते हो नजरअंदाज किया है मैंने कल तक तो साथ निभाये थे हमने आज इतना समझदार हो गये हो  कि अब अपने आप से ही शरमा रहे हो समझौते का ख्वाब देख रहे हो या घुट-घुट कर जी रहे हो क्योंकि मैं वो आवाज़ हूँ,  जिसमें तुम झुलस रहे हो। अब सब्र मुझको नहीं तुमको करना है  जो सहना है, तुम्हें ही सहना है, सुनना भी अब तुमको ही पड़ेगा  सोच विचार कर लो- मुझसे क्या तुम्हारा भूत लड़ेगा? बेवजह खैरख्वाह बनने का सब नाटक बेकार है, जज्बातों से खेलना तुम्हारा पैदाइशी अधिकार है । स्वार्थ की पराकाष्ठा पार कर लो या निज आत्मा की आवाज सुन लो, मेरे आवाज की गूँज हर ओर सुनाई देगी  जो तुम्हें चैन से रहने भी नहीं देगी। तुम मुझे समझना तो नहीं चाहते लेकिन अपने बेसुरे राग में मेरी आवाज़ दबाना चाहते हो, अपने स्वार्थ की आड़ में मुझे मोहरा बनाना चाहते हो। कोशिश करते रहो, कुछ भी नहीं कर पाओगे  हर कोशिश के बाद भी अपना ही नकाब हटाओगे  और सच में बहुत पछताओगे  अपने ही अंतरात्मा की आवाज में  खुद ही गुम होकर जब रह जाओगे, फिर कैसे मुँह दिखा पाओगे? अरे मेरा छोड़ो, क्या सोचा भी है तुमने  क्या मेरी आवाज़ का सामना करने की फिर हिम्मत भी दिखा पाओगे? फिर से समझा रहा हूँ लंबरदार  कि मैं वो आग हूँ, जिसमें जलकर तुम खाक हो जाओगे  और गुमनाम बन जाओगे, तब दिवास्वप्न देखने लायक भी नहीं रह पाओगे। सुधीर श्रीवास्तव  


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