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Nisha Nandini Bhartiya

Others

5.0  

Nisha Nandini Bhartiya

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मातृभाषा

मातृभाषा

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मातृभाषा ज्ञान से 

देश की पहचान से 

संस्कृति के मूल से 

वतन की धूल से ।

स्वयं को बचाकर

सर्व गुण पचाकर

महानता ओड़कर

युवा शक्ति तोड़कर।

दूर आज हो रहे 

अंधकार ढो रहे ,

और हम खड़े खड़े 

निर्लज्ज से पड़े रहे।

माँ की आबरू का

जश्न देखते रहे ।


ज्ञान शक्ति चाव से 

भातृत्व भाव से 

आध्यात्मिक तंत्र से 

ऐक्य सूत्र मंत्र से ।

स्वयं को हटाकर

मौलिकता खोकर

ज्ञान चक्षु बंदकर

देश द्रोही बनकर।

गर्त में गिर रहे 

आत्महत्या कर रहे, 

और हम खड़े खड़े 

निर्लज्ज से पड़े रहे 

माँ की आबरू का 

जश्न देखते रहे ।


सुरसरि के जल से 

धरती के तन से 

गौ माता के धन से 

महकते चमन से ।

स्वयं को मिटाकर 

वास्तविक खोकर 

कृत्रिमता जोड़कर

निराशा में डूबकर।

पश्चिमी हो रहे 

भारतीयता खो रहे ,

और हम खड़े खड़े

निर्लज्ज से पड़े रहे

माँ की आबरू का 

जश्न देखते रहे ।



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