मातृ चरणों पर चढ़ा दो
मातृ चरणों पर चढ़ा दो
मैं विपिन का फूल मुझको, तोड़ प्रतिमा पर चढ़ा दो,
मातृ चरणों पर चढ़ा दो।
जब जिसे कहता जवानी,एक लघु सी ही कहानी,
सुरभि मधु मकरंद की भी, धूल बचती ही निशानी,
हो न जाये जीर्ण -जर्जर, यह कलत कोमल कलेहर,
देव इससे पूूूर्व इसको, साधना पथ पर बढ़ा दो,
मातृ चरणों पर चढ़ा दो।
चढ़ चुके है अगणित जन, मिट चुके अगणित जीवन,
पर अधूरी आज भी है साधना जिसकी चिरन्तर,
कर सकूं में भी समर्पण, गा सकूं कर मौन वंदन
हे प्रभु ! नैवेध बन उस, आरती के स्वर बढ़ा दो
मातृ चरणों पर चढ़ा दो।
आज हूूँ चाहेअकेला, आ रही घर एक वेला,
जबकि मुझसे अगणित बन, इस पथ पर रचेंगे एक मेला,
मातृ का अभिषेक होगा, हर्ष का अतिरेक होगा,
होड़ होगी प्रथममुझको, मातृ चरणों पर चढ़ा दो,
मातृ चरणों पर चढ़ा दो।
मैं विपिन का फूल मुझको, तोड़ प्रतिमा पर चढ़ा दो,
मातृ चरणों पर चढ़ा दो।