माँ
माँ
कुछ खास नहीं था कहना
कुछ बात नहीं था कहना
जो बोल न पाया
ख्यालों की अंजुमन मैं
बिन बोले तुम तक
वह बात पहुंच गयी
आश्चर्य मैं पढ़ जाता हूँ मैं मेरे
दिन की रहमत होगी जरूर तुम
नहीं तो तुम तक मेरी हर
अनकही बात कैसे पहुंच जाती है।
कुछ खास नहीं था कहना
कुछ बात नहीं था कहना
जो बोल न पाया
ख्यालों की अंजुमन मैं
बिन बोले तुम तक
वह बात पहुंच गयी
आश्चर्य मैं पढ़ जाता हूँ मैं मेरे
दिन की रहमत होगी जरूर तुम
नहीं तो तुम तक मेरी हर
अनकही बात कैसे पहुंच जाती है।