मां
मां
मां जाते जाते तू
अपने आंखों के ख्वाब
मुझे दे गई
तमाम उम्र लड़ती रही
अंधेरों के खिलाफ
बन एक मशाल
आज वह मशाल
मेरे हाथों में थमा गई्
निकल पड़ी हूं मैं
एक सफर पर
लिए हाथ वो मशाल
संग चल रहा न कोई
तो क्या
एहसास कराती तू हर पल
हो यहीं आस पास कहीं
सरलता तेरी वन प्रवाह
धमनी में दौड़ती रहती मेरे
ख्वाब तेरे सोने न देते मुझे
होगी मुकम्मल ये जिस दिन
सिर रख गोद छिप आंचल में
पास आ तेरे सो जाउंगी उस दिन.