माँ
माँ
बचपन के यादों के स्वर्ण महल की परी है माँ,
सितारों के दुनिया की पूरी परी कथा है माँ,
मुश्किल में हमें थाम लेती ऐसा फरिश्ता है माँ,
दुनिया में चलने की सही राह बताती गुरु ब्रह्मा है माँ,
माँ के आँचल में पूरी दुनिया समाई,
मेरे लिए एक युग व पूरा ब्रह्मांड है माँ।
यौवन के कंचन रेत पर
रजनी जल है माँ,
जीवन के नीलाम्बर में
इंद्र धनुष है माँ,
पाषाण से कठोर जग में
स्निग्ध धार है माँ,
ऐश्वर्य- संपदा- वैभव से बढ़
स्नेह की कुबेर है माँ,
माँ के आँचल में पूरी दुनिया समाई
मेरे लिए एक पूरा युग है माँ।
स्वयं बाती बन रोशन देती
वो अमर- दीप है माँ,
अपने अंग अंश के तम में
स्वर्णिम आभा सा तेज है माँ,
अंतिम यात्रा में भी अपने अंश के
स्वर्ग से पुष्प पथ बन बिछ जाती है माँ,
इसलिए माँ के आँचल में पूरी दुनिया समाई
मेरे लिए एक युग और पूरा ब्रह्मांड है माँ।