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पुनीत श्रीवास्तव

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पुनीत श्रीवास्तव

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माँ

माँ

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जब एक हाथ से दोनो गालों को और 

दूसरे से बाल बना जाती थी मांग काढ़ के 

दो पराठें और भुजिया सब्जी

दो खानो के टिफिन में सजा जाती

हमें ही नए कपड़ों में देख के मन ही मन

नज़र न लगे का टीका लगा जाती

उलाहना देने वालों को झूठा बतला जाती


हमारी उपलब्धि को खुद की

समझ के इतरा जाती,

अति हुई शरारतों की तो थप्पड़ों से

झनझनाहट दे जाती 

हमे दूल्हा बना देख के मुस्काती 

हमारे बच्चों में हमारी झलक पाती ,

एक एक घटना को हमारे बचपन से

जोड़ के खुश हो जाती 

हमारी पसन्द नापसन्द को 

समझ के समझाती 


ऐसी अनगिनत छोटी मोटी घटनाओं में साथ हमारे, हमारी माँ 

हर पल यादगार साथ तुम्हारे !


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