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Dr Vivek Madhukar

Abstract

5.0  

Dr Vivek Madhukar

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माँ नहीं बनी थी जब

माँ नहीं बनी थी जब

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माँ नहीं बनी थी जब

फँसकर गिरी नहीं

बिखरे खिलौनों पर

भूली नहीं बोल किसी

लोरी के गाते-गाते

सोचा नहीं कभी,

कहीं पत्ते पौधों के

ज़हरीले तो नहीं। 


माँ नहीं बनी थी जब...

झल्लायी नहीं खुद पर कभी

महसूस किया नहीं कभी बेचारगी

गीले हुए नहीं थे कभी या कि गंदे

वमन से नए कपड़े

ठीक बाज़ार के लिए निकलते वक़्त। 

काबू रहता था मन पर पूरी तरह

और विचारों पर भी

सोती थी रात भर हो निश्चिन्त। 


माँ नहीं बनी थी जब...

कभी पकड़ी नहीं चीखते

बच्चे को जबरन

ताकि जाँच सकें डॉक्टर

या कि लगा सकें सुई


कितना अमानवीय

लगता था यह सब पहले। 

कभी रोई नहीं देख

आँसू - भरी दयनीय आँखें

कभी झूम उठी नहीं

ख़ुशी से एक मीठी मुस्कान पर


कभी गुज़ारी नहीं थी

रातें आँखों में या कि

देखती रही थी रात-भर

निश्छल स्मित हास

अपने सोये शिशु के चेहरे पर। 


माँ नहीं बनी थी जब...

कभी गोद में लिए घूमती नहीं रही

सोते बच्चे को सिर्फ इसलिए कि

जाग ना जाये

लिटाते साथ बिस्तर पर। 


महसूस की नहीं थी कभी

दिल टूटने की तड़प, वैसे

जैसे करती हूँ तब

जब दूर कर पाती नहीं

उसकी अजानी व्यथा को

रोक पाती नहीं उसे चोट लगने से। 


कभी जाना नहीं इस तरह कभी

एक छोटी-सी चीज़

कुछ यूँ जकड़ लेगी अपने पाश में

कभी जाना नहीं इतना प्यार

भी करूँगी किसी से कभी

कभी जाना नहीं इतना सुख है

माँ बनने में। 


माँ नहीं बनी थी जब...

जानती नहीं थी

क्या होता है दिल का धड़कना

शरीर के बाहर,

एहसास नहीं था उस तुष्टि का

जो मिलता है अपने

क्षुधातुर शिशु का पेट भर कर। 


जानती नहीं थी कि होता है

कैसा अनूठा

यह अटूट बंधन

माँ और उसके शिशु का। 


न यह जानती थी कि

कितनी ख़ुशी दे सकती है

एक नन्ही-सी जान

और ये भी कि

कितना महत्वपूर्ण बना देता है

यह मातृत्व-पद खुद को। 


माँ नहीं बनी थी जब

उठी नहीं कभी

आधी रात को

हर दस मिनट पर

आश्वस्त हो लेने के लिए कि

सब ठीक-ठाक है। 


महसूस किया नहीं था कभी

रिश्ते की उष्णता को,

यह आनंद,

यह प्यार,

उसकी एक सिसकी पर

दिल का फट पड़ना,


माँ होने का यह अनिर्वचनीय सुख,

पूर्ण संतुष्टि का यह भाव। 

ये भी कहाँ जानती थी कि

मैं इस काबिल हूँ भी कि

कर सकूँ महसूस

इतना कुछ अपने अंतर्तम में

माँ नहीं बनी थी जब।


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