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अनामिका वैश्य आईना

Abstract

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अनामिका वैश्य आईना

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माँ की ममता

माँ की ममता

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पग-पग साथ निभाती है निराश न होने देती है

एक माँ ही है जो कभी हमको न रोने देती है..


माँ के आँचल की ठंडी छाया में मिलती जन्नत 

जब आँचल से लगा माँ गोदी में सुला लेती है


पिता और ईश्वर से भी ऊँचा है माँ का दर्जा 

दुआ वाला कर सिर धर माँ नव हौसले देती है..


हाथ पकड़कर मेरा चलना सिखाया माँ ने

काले टीके से मुझपर की कुनजरें उतार देती है..


माँ करुणा नेह की नगरी अमृत का गागर है

रंग भरकर नए नए हमें ख्वाब सलोने देती है..


माँ का हर रूप निराला बिल्कुल ईश्वर जैसा

भोली सी माँ मेरी मेरे दर्द से ख़ुद ही रो देती है..


माँ की मेहनत कोशिश से बन जाते हम इंसां

सारे दर्द ख़ुद सहकर हमको उड़ाने देती है..


अस्तित्व मेरा तुमसे ही तुझ बिन मैं कुछ भी ना

देह तेरी लहू तेरा रुह तेरी मुझे साँस देती है.. 


ममत्व माँ का और दुआ रहती है साथ हमेशा 

मुसीबतों से जब बचती आईना जान लेती है..



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