माँ का दर्द
माँ का दर्द
अब वो घर में,घर में, घर मे, घर में मिलता ही नहीं।।
कभी वो दिल से, दिल से, दिल से, दिल से निकलता ही नहीं।।
मैं तो माँ हूँ,सोचती हूँ, तू कहीं मिल जाएगा।
तेरे पिता का,हाल बुरा है, तू समझ ना पायेगा।।
लाख चाहैं,पर कभी वो, दिल से निकलता ही नहीं।
अब वो घर में,घर में, घर मे, घर में मिलता ही नहीं।।
कभी वो दिल से, दिल से, दिल से, दिल से निकलता ही नहीं।।
तेरी, नजरो में नहीं है कदर मेरी आजकल।
आँसुओ को, साथ लेकर, जी रहे हैं आजकल।
लाख चाहे पर तेरा दिल, दिल पिघलता ही नहीं।
अब वो घर में,घर में, घर में, घर में मिलता ही नहीं।।
कभी वो दिल से, दिल से, दिल से, दिल से निकलता ही नहीं।
तेरा बचपन, आज भी अठखेलियाँ करता यहाँ।
तेरे साथी आज भी, पूछते तुझको यहाँ।
राखी वापिस कई जा चुकी है,पर तू आता ही नहीं।।
अब वो घर में,घर में, घर में, घर में मिलता ही नहीं।।
कभी वो दिल से, दिल से, दिल से, दिल से निकलता ही नहीं।।
आम में अब बौर आये, बाग की डाली डाली बुलाये।
घर के पीछे की गली और घर की हर थाली बुलाये।
थाली सजाकर बैठती हूँ पर तू मिलता ही नहीं।।
अब वो घर में,घर में, घर में, घर में मिलता ही नहीं।।
कभी वो दिल से, दिल से, दिल से, दिल से निकलता ही नहीं।