माँ हूँ ना
माँ हूँ ना
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तुम हर बार
झूठ पे झूठ
बोलते रहे
तुम्हारे हर
झूठ पर विश्वास
करती रही
सब कुछ जानते
हुए कभी कुछ
नहीं कही
हमेशा तुम्हारा हर झूठ
मुस्कुराते हुए
सहती रही
तुम्हारी ग़लतियों
को हमसे ढकती रही
सोचती रही
आज नहीं तो
कल तुम ज़रूर
सुधरोगे
अपनी ग़लतियों
को ज़रूर समझोगे
यही सोच के
हर ग़लती पे
तुम्हारी पर्दा
डाला है मैंने
मैं माँ हूँ ना