लटकते किसान
लटकते किसान
छाले पड़े हैं पग में जिनके
पसीने की बूंदे है माथ
आप ही धरा के सच्चे सेवक
अन्नधन के आप ही नाथ
रोज सवेरे पग में मृदा है
कमर पर बीज की है गांठ
हैं श्रमजीवी,धरा के पुत्र
कुदाल, हल है जिनके हाथ
सरकारों की आँखें न भींगे
दिलों है पत्थर, है काठ
कर्ज में डूबे किसान बंधु
जोहे हैं अनुदान की बाट
सल्फास की गोली अब नहीं
लटको ना शाखा से भ्रात
उदर की ज्वाला शांत आपसे
खड़े - लड़ेंगे हम सब साथ