लम्हा
लम्हा
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छोटे भले ये पल, क़ीमत तो है बड़ी।
रख लो सहेज कर, हर सुन्दर सी घड़ी।
बेकार ज़िंदगी, जो प्यार ना किया।
इक लम्हा इश्क़ का, तुमने जो न जिया।
उस पल को ढूँढते, मुद्दत गुजर गयी।
जब हम तुम साथ थे, हसरत भी थी नयी।
मिले थे जिस जगह, हम तुम बार बार।
सोचा जा माँग लूँ, इक पल को मैं उधार।
एक दिन लौट कर, पहुँचा मैं फिर वहीं।
वहाँ दास्ताँ मिली, लम्हा कहीं नहीं।
अब दास्ताँ वही, कहता है ये अवि।
शायर कहो इसे, या कह लो इसे कवि।