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Amit Kumar

Tragedy

4.7  

Amit Kumar

Tragedy

लेटर फ्रोम प्रियंका

लेटर फ्रोम प्रियंका

2 mins
184


भैया अच्छा लगा की तुमने पीड़ा पूछी 

पर क्या समाज सेवियों को नहीं है,

मेरी भावनाओं में रुचि ?

आज कोई क्यों आगे नहीं आ रहा है

मेरे लिये इन्साफ की आवाज़,

उठा रहा है ?


क्या आज भी केवल मजहव की बाते होंगी ?

क्या आज भी उनकी उम्र का तकाजा होगा ?

क्या कोई पूछेगा मेरे माता पिता का हाल ?

क्या कोई देख पायेगा उन्हे होता बेहाल ?


पहले तो उन बलात्कारियों के

माता पिता को लाया जाए

उनको मेरा अध्जला शरीर दिखाया जाए,

फिर उनको मेरे माता पिता से मिलाया जाए

मेरे बिलखते घर में,

उनको मेहमान बनाकर रुकाया जाए।


फिर पूछा जाए कि

उनको कैसा मेहसूस हुआ

और फिर उनसे पूछो

उन बच्चों के साथ,

क्या किया जाए ?


या फिर इतना ही करवा दो

उन पापियों के माता पिता को

उन्हीं की आंखों के सामने जला दो।

उन्हें और उनके जैसों को

महसूस तो हो

कि जलना और उसके बाद

परिवार का तड़पना,

कैसा होता है ?


और उन माता पिता को तो

जरूर जलाओ 

क्योंकि उन्होने ऐसे राक्षसों को जो जन्म दिया

और आवारा कुत्तों की तरह पाला।

उन बहनों को भी सजा दो,

जिन्होंने उन्हे राखी बांधकर,

समाज का हिस्सा बनाया।


माता पिता को चाहिये की हर गलती पे

बच्चो को भयानक सजा दे

ना की आज के समाजिक

कार्यकर्ताओं के हिसाब से

उन्हे गलती के बाद प्यार दें।


रामचरित मानस मे लिखा है की,

"भय बिना प्रित नहीं"

बच्चो की प्रित पानी है,तो भय भी दिखाओ

गलत का नतिजा उन्हे बचपन से सिखाओ

जितना प्रेम दे रहे हौ बच्चों को

उतना ही समाज बर्बाद हौ रहा है


इससे पहले बच्चें पीटते थे तो कम से कम

लोगों के लिया माँ उर दिल मे मर्यादा तो थी।

पहले का असभ्य समाज ही सही था

कम से कम, अपनापन, मान, मर्यादा,

इन शब्दों को पहचानते तो थे,

पर आज ये शब्द किताबों में सिखातें हैं

लेकिन लोगो के दिल में नहीं उतर पाते हैं।


बस भैया मुझे तब शान्ति मिलेगी

जब सारा भारत एक साथ मेरे साथ होगा।

ना की टुकड़ों में बंट कर, कुत्तों की तरह,

एक दूसरे पे भौंक रहा होगा।

एक फिर से धन्यवाद भैया

मुझे याद करने कर लिया।


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