लड़के नहीं रोते
लड़के नहीं रोते
छोटा था जब
मां का दुलारा था
पापा ने भी बडे लाड़ से पाला था
दीदी से लड़ता था
मार भी खाता था
रो नहीं पाता था
सब चिढाते थे
लड़के होकर भी रोते हो
स्कूल में गया
टीचर ने डांटा पीटा
गुस्सा बहुत आया
रोने को मन किया
मगर कैसे रोता
लड़का था न
ममी पापा को एक दिन
दूर कहीं जाना था
घर में अकेला था
डर ने आ घेरा था
मन बहुत घबराया था
मगर किसी से
कह नहीं पाया था
लड़के होने का
फर्ज यूं निभाया था
पढ़ने विदेश में
अब मुझे जाना था
अपनों से बिछुड़ना
मन को समझाना था
रुक जाने का कोई
चला न बहाना था
मां की रुलाई देख
मन तो चिल्लाया था
फूट फूट कर मगर
रो कहां पाया था
गले मुझे रोने को
किसी ने लगाया नहीं
मन की भावनाओं को
बता कभी पाया नहीं
अब अकेले रात भर
तकिए भिगोता हूं
लड़का हूं सबके सामने
कभी नहीं रोता हूं।