लड़के इंसान ही तो होते हैं
लड़के इंसान ही तो होते हैं
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सौष्ठव शरीर है उनका
दिल तो कोमल होते हैं
बातें दुखती है उन्हें भी
वो भी उदास होते हैं
कुछ इच्छायें अपनी भी
जिम्मेदारियों में खोते हैं
कुछ सपने ना पूरे होंगे
मालूम है फिर भी सोते हैं
इंसान ही तो पैदा हुए
फ़िर अतिरिक्त भार ढोते है
विशिष्ट गुणों की पदवी लेकर
मूल अधिकार तो खोते हैं
एक बेटे है, पति है, भाई है
दोस्त है, पिता है, एक पोते है
क्या फर्क़ हो गया और इंसानों से
क्यूँ भला लड़के नहीं रोते हैं?