लावारिस कान
लावारिस कान
सौ शिकायतें हैं
मुझसे ही
तमाम अपनों के
मेरी शिकायती पेटी
भरी जाती है प्रतिदिन।
इसे खोलना भी किसलिये
और किसके लिये
मैं से मेरी ही शिकायत
नहीं बनती।
सुनती हूँ सबकी
अपनी छोड़कर
गुस्से का पराया पहाड़
उगते उगते
मेरे चारों तरफ
बाँध सा खड़ा है।
तराई हो चुकी हूँ मैं
एक लम्बा चौडा़ा बंजर मैदान
ज़बान की गुफा का दरवाजा
चालीस चोर का सरदार
अलीबाबा बंद करके
खोलने का मंत्र भूल चुका है।
कान का पट
सनका जंगली हाथी
चौखट के साथ ही
उखाड़ फेंका है।
हवा कम
और बातें ज्यादा गुज़रती हैं
जिसको भी बोलना है
बोल जाये
यहाँ कोई पट नहीं है
लावारिस कान है।।