लाल रंग
लाल रंग
एक लड़की सहमी सी ,
सकुचाई सी ,
सबसे नज़रें बचाकर ,
अपने कपडे सम्हालती ,
बार बार पीछे पलटकर,
अपने कपडे देखती ,
अपने आप पर शर्मिंदा सी ,
धीरे धीरे कदम बढ़ाती जा रही है।
मेरी आँखें उसे घूरती ,
घबराहट का कारण ढूंढ़ती ,
अनजाने ही उसके कपड़ों से झांकते ,
लाल रंग को देखती ,
इसी रंग से तो मिली थी ,
जब आँखें पहली बार खुली थी ,
फिर सृजन के प्रतीक रंग पर ,
लड़की शर्मिंदा क्यूँ हो रही है।
जब माथे पर सजे लाल रंग ,
तो सौभाग्य बन जाता ,
यही रंग जब हाथों में रचे ,
तो गहरी प्रीत कहलाता ,
नया जीवन देता यह रंग ,
हर लड़की को खास है बनाता,
मेरी आँखे उस खास लड़की को ,
मुसकुराते हुए जाने का सपना देख रही है।