***क्यों नहीं होता***
***क्यों नहीं होता***
मैं देखता हूँ कोई सपना वो पूरा क्यूँ नहीं होता
कोई बदलें जो रास्ता प्यार गहरा क्यूँ नहीं होता।
हो नियत साफ फिर भी रुख नजर तो बदलती हैं
कोई बिगड़ी बना जाये वो मेरा क्यूँ नहीं होता।
यूँ मिल ना पाए हम तो क्या तेरे है हम मेरे हो तुम
हमारे हाथों से कोई भी करिश्मा क्यूँ नहीं होता।
जो एक के बाद एक टूटते हुए सपनों को कोसता हूँ
मैं हर दिन जाग तो जाता हूँ, जिंदा क्यूँ नहीं होता।
मुझे लगता कहीं तो फूल से भँवरा आज लिपटा है
मुझे "नीतू" यादें तेरी ना आए ऐसा क्यूँ नहीं होता।