क्यों, कोई तुम सा नहीं लगता
क्यों, कोई तुम सा नहीं लगता
तुमसे मिलने की चाहत क्यों
हमेशा बढ़ती जाती हैं,
तुमसे नजरें मिलाने को क्यों
यूं बेताब सा होता हैं दिल मेरा,
तुम्हारे संग रहने को क्यों
बेहाल सी होती हूं मैं,
खूबसूरत नजारे होते हुए भी
क्यों खोई सी रहती हूं ख्यालों में तेरे,
क्यों कोई प्यारा सा नहीं लगता
दिल को मेरे,
क्यों कोई छूता नहीं रूह को मेरे,
क्यों तेरे सिवा कोई मुस्कान नहीं लाता चेहरे पर मेरे,
क्यों कशमकश सी रहती हैं दिल में मेरे,
क्यों बेचैन सी रहती हैं ख्वाहिशें बिन तेरे
क्यों धड़कने बस में नहीं रहती बिन तेरे
क्यों नहीं लगता मन कहीं बिन तेरे
अब तुम ही बताओ
क्या यही प्यार हैं?