"क्या तुम सुकून से सो पाते हो"
"क्या तुम सुकून से सो पाते हो"
मुझे नींद नहीं आती रातों में
क्या तुम सुकून से सो पाते हो ?
चाँद-तारों की इस महफिल में
मैं हर रोज सुनाया करती हूँ
हमारी खूबसूरत सी दास्तान,
क्या तुम इस खूबसूरत सी दास्तान को
हमारा गुजरा हुआ कल
बता पाते हो ?
मुझे आज भी याद है
वो हसीन लम्हा जब हम
पहली बार मिले थे,
क्या तुम उस पल को
महज़ एक मुलाकात मान
भूला पाते हो ?
मैं आज भी पढ़ लिया करती हूँ
अपनी डायरी के उन पन्नों को
जिन पर बडी़ शिद्दत से मैने
कभी अपने अहसासों को उतारा था,
क्या तुम मेरी मौजूदगी के अहसासों को
नादान से दिल की खता मान
दफन कर पाते हो ?
आज भी मेरा दिल कहता है
कि एक बार बात कर लूँ तुझसे,
मेरी आवाज सुने बगैर
क्या तुम रह पाते हो ?
मुझे आज भी याद है कि
तुझे बहुत पसंद था मेरे बिखरे बालों में
अपनी अंगुलियाँ उलझाना,
क्या उतनी ही शिद्दत से
आज किसी की उलझी हुई जुल़्फें
सुलझा पाते हो ?
आज भी याद है मुझे कि
तेरा दिन नहीं बनता था
मुझे देखे बगैर,
क्या किसी और का चेहरा निहार के
आज दिन बना पाते हो ?
बडे़ हक से तुम
अपना बताया करते थे ना मुझे,
क्या वही हक आज किसी और पर
जता पाते हो ?
मुझे तुम बिन जीना
बेवजह लगता हैं आज भी,
क्या तुम मेरे बगैर जीने की
कोई वजह ढूंढ़ पाते हो ?
मेरा हर एक किस्सा
तुझसे शुरू होकर
तुझ पर ही खत्म हो जाता हैं,
क्या तुम अपने किस्सों से
मुझे बेदखल कर पाते हो ?
आज भी तेरे सामने आने से
खत्म हो जाती हैं
मेरी नजरों की तलाश,
क्या तुम मेरी तलब से
बेखबर रह पाते हो ?
सुना है तुम्हारी नयी वाली
बहुत हसीन है,
पर क्या मेरा चेहरा तुम
आज भी भूल पाते हो ?
और सुनो,
मुझे नींद नहीं आती रातों में
क्या तुम सुकून से सो पाते हो ?