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क्या लिखूँ

क्या लिखूँ

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क्या लिखूँ अब क्या लिखूँ

मन में जैसे कुछ बचा ही नहीं,

यूँ तो पूछने हैं सवाल कई,

पर ज़िन्दगी की दौड़ में शब्द खो गए कहीं।


जो मन में आया पूछते थे,

जिस पल कुछ चाहा माँगते थे,

अब सब्र करना सीखा गयी ज़िन्दगी,

हमें समझदार बना गयी ज़िन्दगी।


क्या लिखूँ अब क्या लिखूँ

मन में जैसे कुछ बचा ही नहीं,

यूँ तो पूछने हैं सवाल कई,

पर ज़िन्दगी की दौड़ में शब्द खो गए कहीं।


एक लालसा मन में थी

हर गुज़रते पल में थी

किसीकी ख़ामोशी में आवाज़ बनूँ मैं

खुद अपने आँसू पोछने के क़ाबिल रहूँ मैं


कुछ ऐसी मिली बन्दग़ी

मुझे ही ख़ामोश करा गयी ज़िन्दगी

अभी तक खड़े होने में पैर डगमगाते हैं

कुछ ऐसे गिरा गयी ज़िन्दगी


एक नया वादा खुद से किये

फ़िर बिना डगमगाये चलने की आशा लिए

क्या लिखूँ अब क्या लिखूँ

मन में नए ख्याल बुनती रहूँ,

रोज़ नये शब्द ढूंढ़ती रहूँ।


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