क्या क्या दिन देखने पड़ रहे है
क्या क्या दिन देखने पड़ रहे है
क्या क्या दिन देखने पड़ रहे हैं
जेल मंत्री तिहाड़ जेल में सड़ रहे हैं ।
भ्रष्टाचार के पहाड़ पर वे खड़े हैं
फिर भी बेशर्मी से अकड़ रहे हैं ।।
जिनका कभी यहां एकछत्र राज था
राजमाता, युवराज सा शाही अंदाज था
वो आज झक मारकर पैदल चल रहे हैं
मंदिर मंदिर ढोक लगा नाक रगड़ रहे हैं ।।
आतंकवादियों के हमदर्द हमसाये थे
बेगुनाह, मासूमों के खून में नहाये थे
"नवाबी" भूलकर जेल की चक्की पीस रहे हैं
"गद्दारी" के तमगे सीने पर जड़ रहे हैं ।।
"लुटियंस" बनकर सत्ता की दलाली करते थे
राज्य सभा, पद्म पुरुस्कारों के लिए गुलामी करते थे
वे पत्तलकार "खलिहर" बनकर गली गली घूम रहे हैं
सोशल मीडिया के जूते उन पर बेहिसाब पड़ रहे हैं।