कविता
कविता
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अनवरत चिंतन से उपजी
कुछ नई सोच से उजली
भावों को व्याकरण में पिरोती
होठों पर एक मुस्कान दे जाती
फिर अनायास ही मुख पर आ
जाती।
कहीं आंसूओं में झलकती
कहीं किलकारियों में ठहरती
कहीं रागों को सहेजती
कहीं अंतर्मन को कुरेदती
अंत में सुरों में सजती
कभी समाज का आईना बनती
कभी समाज को आईना दिखाती
देखते ही देखते साहित्य की
अनमोल विधा बन जाती।