कविता………
कविता………
जब द्वार कोई मन का खोलता है
और मन होले से अपने को टटोलता है
तब कविता होती है!!!
जब नींद दबे पाँव आ कर कुछ कह जाती है
और आँखों ही आँखों में रात गुज़र जाती है
तब कविता होती है!!
जब शैशव का रंग निखरता है
और बचपन यौवन में ढलता है
तब कविता होती है!!!
जब खुली आँखों का संसार सपना लगता है
और दूसरों का दुख भी अपना लगता है
तब कविता होती है!!!
हंसी ठिठोली की महफ़िल जब सजती है
और विरहनी कोई साजन का राह तकती है
तब कविता होती है!!!!
टूट जाता है जब निश्छल मन
और उठता है भावों से आवरण
तब कविता होती है!!!!
जब चारों और बसंत बयार चलती है
और कड़ी धूप मन को कहीं छलती है
तब कविता होती है!!!!
फूट फूट कर उभरते है जब मन के अंकुर
और सपने सारे जब जाते हैं बिखर बिखर
तब कविता होती है!!!!!!
सच तो यह है .......
जब भी दिल की कली अकुलाती है
और ‘मैं’ जब ‘मुझसे’ मिलने आती है
तब कविता होती है !!!!!!!!!!!’