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Archana Tiwary

Abstract

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Archana Tiwary

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कविता

कविता

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कई दिनों बाद उसने किताबों वाली अलमारी खोली 

लगा मानो सालों से बंद 

कोई खिड़की खुल गई 

एक किताब उठाया तो 

न जाने कब मचलते हुए

एक कविता फिसल गई 

लगा भागने कविता के पीछे 

भागते भागते पहुंच गया

फिर उस जगह जहां बैठकर कभी भरा करता था 

अपनी कविताओं में रंग 

देखो बिखरे हैं फिजाओं में 

आज भी वो रंग 

भर लो मुट्ठी में फिर से वो रंग 

बना लो अहसासों से कविता को रंगीन 

छू लो फिर से सबके दिल



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