कविता लिखने लगा
कविता लिखने लगा
शब्दों को जब मैं धागों में पिरोने लगा।
कुछ अपनी कुछ दूसरों की
जिंदगी की कविताएं लिखने लगा।।
माँ की परंपराओं की गठरी में
जिंदगी की पहचान खोजने लगा।
पिता के संघर्ष का अंश
खुद में खुद को देखने लगा।।
टूटी हुई मचानों से
जब दर्द किसी का कानों में गूँजने लगा।
न नींद उसको
न नींद का ख्वाब मुझको आने लगा।।
कुछ जीने की चाहत लिए
शब्दों की मार्मिक दुनियाँ रचने लगा।
प्रेम रस से सराबोर
प्रेम कविता लिखने लगा।।
चाँद सी खूबसूरत प्रेमिका की भूमिका को
हाथों की लकीरों में देखने लगा।
अनसुना सा अनछुआ सा
अहसास पल पल जीने लगा।।
काजल उसकी आँखों का
प्रेम का गहरा सागर लगा।
उससे दूर मन की नाव का
किनारा कहीं और न लगा।।