कविता की कविता
कविता की कविता
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कविता- की कविता
शीर्षक विहीन हुई
जग में दीन-हीन हुई
रक्षकों-भक्षकों की नजर का शिकार
हर रहगुजर के अधीन हुई ।
कविता- की कविता निराश हुई
शीर्षक विहीन हताश हुई
शीर्षक की खोज में गुमराह
केवल एक तलाश हुई।
कविता - की कविता
घुंघरूओं की झंकार हुई
महफिलों में गुलजार हुई
बाजार में सजी और सजती ही गई
इंसान से चीज और समान हुई।
भान्ति-भान्ति के रसों में रची-बसी
कविता- की कविता साकार हुई
सम्मान की पराकाष्ठा को प्राप्त
रंगमंच पर सत्कार हुई ।