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निशान्त "स्नेहाकांक्षी"

Tragedy

3.8  

निशान्त "स्नेहाकांक्षी"

Tragedy

कवि की मृत्यु

कवि की मृत्यु

1 min
202


होता है जब-जब मर्यादा का मर्दन, 

उठता है चीर हरित द्रौपदी का करूण क्रंदन, 

कवि की मृत्यु हो जाती है, 

और कविता रह जाती है अकिंचन! 


जब लोक लाज की व्यर्थ तुला पर, 

अग्नि परीक्षा देती जानकी पतित पावन, 

ज़ाहिर हो जाता है शब्दों का बेतुकापन, 

उस क्षण कवि की मृत्यु हो जाती है, 

और कविता रह जाती है अकिंचन! 


जिस नारी सौंदर्य की देन है ये, 

अनगिन कविताओं का मूल सृजन, 

उस स्त्री की "निर्भया गाथा" सुनकर, 

छलनी हो जाता है तन-मन, 

फिर कवि की मृत्यु हो जाती है, 

और कविता रह जाती है अकिंचन! 


जब तक है मौन खड़ा ये जग, 

हो रहा नारी -अस्मिता का यूँ नर्तन

जब तक पृष्ठों पर है नारी के, 

अनुभूति नहीं, सहानुभूति का अंकन, 

कवि निष्प्राण ही माना जायेगा, 

और कविता अकिंचन ही रह जायेगी! 



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