कवि अंधेरे
कवि अंधेरे
इस संसार मे कवि कब अकेले होते हैं।
उनके संग उनकी यादों के मेले होते हैं।।
जब सो जाता है,यहां पर सारा जहान।
तब उठते उसके भीतर शब्द-तूफान।।
जब कवि के भीतर उजियारे होते हैं।
तब जाकर जग के भोर मेले होते हैं।।
उठाकर,कलम,लगाते हैं,शब्द मरहम।
कौनसे कम चिकित्सक चेहरे होते हैं।।
इनके लिये तम,उजाले एक से होते हैं।
कवि,सत्य के जलते हुए दीये होते हैं।।
इस संसार मे कवि कब अकेले होते हैं।
उनके भीतर,छिपे कई सवेरे होते हैं।।
कवि के घट भीतर जब अंधेरे होते हैं।
तब जाकर कई अमावस फेरे होते हैं।।
कवि तो वो त्रिकालदर्शी चेहरे होते हैं।
कवि भूत,भवि,वर्तमान चितेरे होते हैं।।