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कुछ न कहना

कुछ न कहना

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यह जो मेरा हुनर है

तेरे प्यार की चुनर है

यह जो मेरा हुनर है

तेरे प्यार की चुनर है


जब भी यह लहराई है

मैंने प्रेरणा ही पाई है

नई रचनाओं की 

नई वेदनाओं की


नई भावनाओं की

नये जीवन की

नये संघर्ष की


इस प्यार की फुहार को

यूँही बरसाते रहना

यूँही बहारों के जैसे

मुस्कुराते हुए रहना


यूँ ही पहाड़ों के दहानों को

हटाते हुए रहना

यह शीतल पेय झरनों को

यूँ ही लुटाते हुए रहना


यह ज़ुल्फ़ें बरहम को

यूँ ही लहराते हुए रहना

कुछ कह नही पाओ गर

यूँ ही शांत बने तुम रहना


यह प्रेमसुधा का अमृत

यूँ ही पिलाते हुए रहना

यूँ ही कबीर के दोहों सी

तुम गाते हुए रहना


यूँ ही मीरा की भक्ति सी

तुम भक्तिमय रहना

यूँ ही मीर की ग़ज़लों को

तुम सुनाते हुए रहना


यूँ ही गांधी सुभाष अम्बेडकर को

तुम लाते हुए रहना

यूँ ही फिदा हुसैन की चित्रकारी में

रंगों सी तुम रहना


यूँ ही ताजमहल की ईमारत में

संगों सी तुम रहना

यूँ ही ग़ालिब के शायरी में

दर्द बनकर तुम रहना

यूँही बैजू बावरा बन


किसी तानसेन से तुम कहना

कहने को बहुत कुछ है

मग़र अब कुछ न तुम कहना।


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