कुछ इस तरह
कुछ इस तरह


कुछ इस तरह कविता है मेरी
कि किसी और को जता ना सके
कुछ इस तरह कहानी बनीं कि
किसी और को खुद बता ना सके
कुछ इस तरह दिल टूटा कि
फिर ना कभी यह जुड़ पाया
कुछ इस तरह जख्म गहरे हुए कि
दिल वापस पीछे ना मुड़ पाया
कुछ इस तरह उसने बहकाया कि
खुद का भी ख्याल ना आया मुझे
कुछ इस तरह मैं बहक गई कि
लगने लगा अब जाकर मैंने पाया तुझे
कुछ इस तरह उसने इकरार किया कि
हम उसे मना तक ना कर सके
कुछ इस तरह उससे प्यार हुआ कि
किसी गैर को अपना ना कर सके
कुछ इस तरह वह वापस आया कि
हम कभी उससे दूर जा ना सके और
कुछ इस तरह वह दूर गया कि
हम किसी और के पास आ ना सके.