कुछ गुनगुनाना चाहता हूँ
कुछ गुनगुनाना चाहता हूँ


(वैलेंटाइन डे स्पेशल)
अपने अहसास, धीमे धीमे सुनाना चाहता हूं।
तुम अगर कह दो, तो कुछ गुनगुनाना चाहता हूँ।
सुर मेरे टूटे हुए हैं, लय भी रूठे हुए हैं।
फिर भी जिद है कि तराना बनाना चाहता हूँ।
नींद भी आई न थी कि सुबह दस्तक देने लगी,
तेरी जुल्फों के बादलों में भीग जाना चाहता हूं।
तेरी आँखों में एक समन्दर का फैलाव है
उसी में डूबकर अपनी थाह पाना चाहता हूँ।
वैसे तो जिंदगी में गमों की गिनती नहीं है,
उन्हीं में से हंसी के कुछ पल चुराना चाहता हूं।
तेरे हँसने से छा जाती है जर्रे जर्रे में खुशी
उन्हीं में से थोड़ी हर ओर लुटाना चाहता हूं।
तेरे वजूद में कशिश की किश्ती सी तैरती है
उसी में इस पार से उस पार जाना चाहता हूं।
मैंने चाहा है, तुम भी चाहो ये जरूरी तो नहीं,
फिर भी इस तरफ से उस तरफ तक पुल बनाना चाहता हूं।