कुछ आखिरी लम्हे
कुछ आखिरी लम्हे
आज विचारों की बारात में
मै कुछ गुमसुम सा महसूस कर रहा था,
जिंदगी में किए हर कर्म का
मैं फिर से आंकलन कर रहा था।
आज यूं मैं असहाय जब
बिस्तर पर लिटाया गया हूं,
पुनः उसी आरम्भ सा लगा
जैसे दुनिया में अभी लाया गया हूं।
मेरी बेचैन नज़रें भी आज
मेरे अपनों को ढूंढ रही हैं,
क्या ख्वाब क्या सपनें
अब सब यूं धूल रही हैं।
सामने हाथ पकड़े खड़ा है कोई
कोई यूं मुझे बातें बताता है,
पर कमज़ोर नज़रों से दिखता न कोई
न कोई बात अभी समझ आता है।
इच्छाओं का अब महत्व न रहा
न शेष है कोई महत्वकांक्षा,
मन अब खुशियों से परिपूर्ण है
आज दिनों बाद दिल को सुकून है।