कश्मीर का चीर -हरण
कश्मीर का चीर -हरण
महाभारत में
हमने पढ़ा है ,
कौरव ने
पांडव को हराया !
छल प्रपंच
जुए के खेल में ,
द्रौपदी को दाँव में लगाया !!
हस्तिनापुर -
सभा में खेल
सबके सामने
ही हो रहे थे !
दुर्योधन
शकुनि के प्रपंचों
से पासा रगड़ फेंक रहे थे !!
चुप थी धरा
चुप था गगन ,
भीष्म भी थे
आज आहत !
धृतराष्ट को
एहसास न था ,
कौन पूछे उनकी चाहत ?
जीत का सेहरा
उसे मिल गया
दुर्योधन खेल में
विजयी हुआ !!
लक्ष्य उसका था
चीर हरना ,
द्रोपदी को
निवस्त्र करना !!
आज फिर से
हम महाभारत
एक बार
फिर दोहरा रहे हैं ,
पर इस बार
कुछ नया होगा !
और दिल्ली के दूर
संसद में
कश्मीर का
चीर हरण होगा !!
चित भी मेरी
पट भी मेरी
अब उस महाभारत
की तरह
जुआ नहीं खेलने
की बात होगी !
370 और 35 A को
हटाकर
वर्षों की दबी हुयी
प्यास बुझेगी !!
जश्न का ढोल
हम पीटे जा रहे
सारी सभाएँ
तालिओं से गूंजती है !
दर्द का एहसास
किसको हो रहा ?
द्रोपदी निवस्त्र
देखो घूमती है !!
मामा -भांजे ने अनोखा
खेल खेला
तर्क को सुनने में
बहरे बन गए !
पांडवों को क़ैद
कर के रख दिया
अपने मियां मिट्ठू
जहां में बन गए !!
घृणित इतिहास
के पन्नों को हम
दोहरा के द्रोपदी के दर्द
को जाना नहीं !
उनको कितनी चोट
हमने आज दी है ,
नज़दीक उनके
पहुँचकर पहचाना नहीं !!