कर्ता को तुम
कर्ता को तुम
हर कोई किसी पर दोष धरता है
फिर उस पर अफ़सोस करता है
जो इंसान ज़िंदगी भर डरता है
वो आचंरण भी डरा सा करता है।
कर नहीं सकता जो कुछ काम
वो मज़बूरी का दामन थामा करता है।
अधूरे रास्ते से वो मंज़िल को गिनाता है
और जब हार जाता है दुखी मन करता है।
दुसरो पर निराशा का टिकरा फोड़ता रहता है
बस वो पूरी कोशिश कभी नहीं करता है।
देख लो एक बार, किसी भी कर्म के कर्ता को ,
वो ज़िंदगी भर कुछ ना पाए, फिर भी कर्म करता है।