कृष्ण जी के दरबार में मेरी गुहार
कृष्ण जी के दरबार में मेरी गुहार
आज जा पहुँची मैं
गोकुल में यमुना के तीर,
चढ़ कदंब मुरली बजा रहे
मनोहर लगी ग्वालों की भीड़।
देख मुझे व्यंग पूर्ण मुस्काये,
मानो कटाक्ष का तीर चलाये।
आज कैसे मेरी याद आई है,
ज्ञात मुझे भी धरा पर मची तबाही है।
क्या तुम्हारी श्रद्धा धूमिल हुई
मेरी मनोहर मुरली पर,
या रहा ना विश्वास अब
मेरे सुदर्शन चक्र पर,
कैसे भूल गए तुम मानव मन,
मैंने तो मृत्यु में खोजा अपना जीवन
कभी पग पग बिता संघर्षों में,
कभी मौत स्वयं खोजती गोकुल में
जब इंद्र का क्रोध अवनि पर भारी पड़ा
तब मुझको ही गोवर्धन पर्वत उठाना पड़ा।
तुम कहते हो कलियुग में,
कोई शस्त्र काम ना आवे,
तुम ही बतलाओ महाभारत में
मैंने कब अस्त्र चलाये।
भरी सभा में जब हरण हुआ चीर का
द्रोपदी ने मांगा सबसे हिसाब अपने बहते नीर का,
तब मैं ही दौड़ा था उँगली का चीर लिए,
किस युग में कब ऐसा, किसी ने दिल से पुकारा,
और मैं नहीं आया।
माना कोरोना विषाणु शत्रु अदृश्य है
आज आतंक मचा कर उसकी शक्ति सदृश है,
पर काल व नाश तो सबका निश्चित है।