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Manju Rani

Inspirational

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Manju Rani

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क्रोध और शक

क्रोध और शक

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क्रोध इंसानियत हर लेता

शक रिश्तों को स्वाहा कर देता।

पर फिर भी दोनों इंसान की जेब में रहते

कभी भी निकाल भुगतान कर देते ।

खरीद लेते बर्बादी, अपनी बर्बादी,

अपनों की बर्बादी ।

कब यह क्रोध और शक आग पकड़ ले ,

न उम्र निश्चित, न समय

पर इस अग्नि को हवा

यदा-कदा देते ही रहते ।

मासूमों के घर उजाड़ते ही रहते ।

जाने कितने कुटुम्ब इनकी

आग में सुलगते ही रहते ।

फिर भस्म हो जाते ।

पर जो मासूम इन भस्मों में बड़े होते

वे कभी खुशहाली के

पुष्प खिला नहीं पाते ।

उनके विश्वास खंडित हो

रिश्तों में बिखरे ही रहते ।

दुनिया बसाने के डर से

ही सिहर उठते ।

तो दुनिया कैसे बसाएँगे ?

बस भी गई तो कैसे निभाएँगे ?

तो क्यों ये खंजर जेब में रखते ?

क्यों अपने को लहुलुहान करते ?

क्यों अपनों को प्यार-प्रेम,

विश्वास-भरोसा, सुख-शांति

धैर्य से नहीं जकड़ते ?

क्यों अपने घरों में

सुरम्य स्वर्ग नहीं बसाते ?

क्यों इन्सानियत की

एक नई मिसाल नहीं बनते ?

क्यों विनाशकारी क्रोध और

शक विसर्जित नहीं करते ?


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