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Anjneet Nijjar

Abstract

4.5  

Anjneet Nijjar

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कर्म

कर्म

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एक एक करके,

सब अपने बिछड़ते चले जाएँगें,

काल की चक्क़ी निरंतर चलती,

सब दानें पिसते चले जाएँगें,


क्या जाएगा साथ हमारे,

यह पंडित,मौला,धर्म-ग्रंथ,

धर्म-गुरु न हमें समझा पाएँगे,

धर्म सर पर होगा सवार, 


और उलझते जाएँगें हम,

मौत के बाद का सफ़र कौन है जानता,

क्या गोदान कर रास्ता सुगम बनाएँगें हम,

जानते हैं हम सब क्या सच और क्या है भ्रम,


स्वर्ग-नर्क महज़ डराने के हैं उपक्रम,

सच है तो केवल मनुष्यता और मनुष्य के कर्म,

इस जीवनकाल में मानवता ही है सच्चा धर्म,

इतनी सी बात क्या समझ पायेंगे हम,


अपने कर्मों से ही पहचाने जाएँगें हम,

इस मुश्किल घड़ी में आओ,

हाथ बढ़ाए हम, कर मानवता की सेवा,

अपना स्वर्ग यहीं बनाएँ हम,


इस जीवन को सार्थक बनाएँ हम,

जन-जन की पीड़ा मिटाएँ हम,

और मरने के बाद भी जी जाएँ हम।


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