कर्म - सुख और दुख का कारण
कर्म - सुख और दुख का कारण
पिछले जन्मो और वर्तमान में
किए गए कर्म ही
सुख या दुख का कारण हैं,
सुख या दुख का कोई
दूसरा दाता नहीं है।
"वह मुझे दर्द देता है" - यह एक मूर्ख का रवैया है।
"मैं कर्ता हूँ" - यह अज्ञानी व्यक्ति की गलत
और फलहीन धारणा है।
प्रत्येक व्यक्ति अपने पिछले कर्म
की डोरी से बंधा हुआ है।
सुख-दुःख आपके कर्मों के
फल स्वरुप ही प्राप्त होते हैं।
इसलिए, जो आता है उसे
त्याग की भावना से सहन करना चाहिए
और आराम से रहना चाहिए ।