कोई ईंट उठती है....
कोई ईंट उठती है....




जब मैंने सोचा तुम्हें चाहने के बारे में
तब जाकर जान पाया
मैं अपने वजूद को
बहुत खोखला और पाखण्ड भरा था
मेरे भीतर कहीं तह की गहराई में
तुमने प्यार से टटोल कर
उसको बाहर निकाला
दिल के किसी कोने में
बहुत असहज सा थका हुआ सा
महसूस करता था मैं स्वयं में
लेकिन तुम्हारे साथ ने
बदल दिया सब कुछ मुझमें
मेरे आस-पास सब जगह
और भर दी नई ऊर्जा नया जोश मुझमें
अब मुझमें जो भी है
सब तुम्हारा ही है
तुम मेहनतकशों के दम से
दुनिया की हर शै है
उस एक शै में घर हमारा भी आता है
जब भी कहीं कोई ईंट उठती है
कोई गारा चुना बनाता है
मेरे मज़दूर भाइयों जिक्र तुम्हारा ही आता है
तुमसे ही मिलता है कुछ कर गुजरने का हौसला
तुमसे ही पाया यूं आकाश सा बुलन्द होना...