कोई अज़नबी
कोई अज़नबी
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हर शाम ओ सहर पहर-दर-पहर
साँस की तरह वह रहा गुज़र
हो कोई रहगुज़र या कोई हो शहर
जेहन ओ जिगर बरक़रार है मग़र
न वो हमकदम न वो हमसफ़र
जिस्म ओ जां है वो क्या है वो रहबर
है वजूद में और वही तसव्वर
क़माल है यही मग़र है नहीं उसे ख़बर