कंक्रीट के जंगल
कंक्रीट के जंगल
सुबह जब टहलने निकला
तो देखा कंक्रीट के जंगल
ना थी पंक्षियों की चहचहाहट
ना थी पेड़ों पर कतार से
चलने वाली चींटियां
थे सिर्फ शोर
चारों ओर
पर सब खुश थे
खुशी पर बनावटी
नहीं थे खुश अन्दर से
चाहतें थे बदलाव
पर थे जिम्मेदार वे भी
इसलिए चुप हैं
क्योंकि बहुत देर हो चुकी है।