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Vijay Kumar parashar "साखी"

Others

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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कमियां निकालने का काम

कमियां निकालने का काम

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वो ही करते है,कमियां निकालने का काम

जिसको नही होता है,दुनिया मे कोई काम

पर साखी,आज वही बन बैठे है,गुलफ़ाम

जिनके दिल में छिपे,जहरीले छुरे तमाम


वो अपने पद का करते है,यूं गुरुर,गुमान

जैसे उनके जैसा कोई न है,खास इंसान

एकदिन वो ठोकर खाकर गिरते है,धड़ाम

जो गर्दन ऊंची कर हेकड़ी में चलते है,नाम


जिन्हें लगा होता,घमंड का गहरा,झुकाम

उन्हें कहीं पर भी न मिलता,सुकूँ-आराम

वो ही करते है,कमियां निकालने का काम

जिनके खुद के घराने है,बहुत ही बदनाम


जिस सूरत,सीरत में फर्क,जमीं-आसमान 

उन्ही लोगो ने किया हुआ है,काम-तमाम

फिर भी लोग उन्हें मान रहे,आज भगवान

जिन्होंने दूसरों के काम मे लगाई है,टांग


जो यहां पर रोटी खाते है,नित साखी हराम

वो ही आज मंचासीन हो बैठे है,सुबह शाम

जिनके हृदय है,खराब वो पा रहे,आज आम

आज आम को मिल रहे,गुठलियों के इल्जाम


वो ही कमियां निकालने का करते है,काम

जिनके खुद के भीतर छिपा है,पाप तमाम

पर साखी ऐसे छद्म लोगों से रहना,सावधान

मुँह में राम,बगल में छुरी रखने का करते काम


सच्चा,ईमानदार कितना ही हो गुमनाम

पर कोहिनूर हीरे की अलग होती,पहचान

उन्हें ही मिलती है,साखी जग में एहतराम

जिनका होता है,दुनिया में निःस्वार्थ काम


जब मनु स्व कमियां देखने का करेगा,काम

पर कमियां देखने का भूल जायेगा,खानदान

इसलिये कहता है,साखी बुरा न कोई इंसान

बुरा तो तू है,पहले साखी स्व कमियां ले जान।

 



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