कितने हसीन वो दिन...
कितने हसीन वो दिन...
कितने हसीन वो दिन थे, प्यारा बचपन ,ना कुछ खोने का डर था ...
ना कुछ पाने कि फिकर .. बस अपनी धुन मे मस्त मगन !
कितना खेलकूद - मौज मस्ती , आम चुरा कर भाग जाना ...
पकड़े जाने के बाद घरवालों की पड़ी मार,गुस्सा छोड़कर घाट पर तैरना !
यह कौन सा मोड़ आया है जिंदगी का सब कुछ तो है मगर ...
जाने क्यूँ अधूरा - अधूरा सा लगता है, तुम फिर से याद आती हो !
तेरी जगह तू सही मेरी जगह मैं सही , मेरी कायरता तेरी आशंका ...
ग़लती किसकी समझ में आया.. तब तक फैसला हो चुका था !
क्या खोया, क्या पाया, क्यूँ छलता है सवाल इतना ?
तू आई थी जिंदगी में तूफान की तरह और चली गयी...
तेरा फैसला हमेशा कि तरफ सही साबित हुआ, मेरा गलत !
तू फिर जीती मैं हारा मगर दिल ही नहीं मानता मैं क्या करूँ ?
अब तुही बता मैं समझ सकता हूँ, तेरी मजबूरी ,तेरा प्यार लेकिन ...
यह पगला दिल मानने को तैयार ही नहीं जाने वाले लौट के नहीं आते कभी !
मैं थक चुका हूँ उसे समझाते की तुम नहीं आओगी कभी फिर भी....
मेरा दिल कहता है...एक दिन वो ज़रूर आयेगी, कहाँ गये वो दिन ... !