किताब-ए-ज़ीस्त
किताब-ए-ज़ीस्त
किताब-ए-ज़ीस्त के असरार खुल रहे हैं,
हर पन्ने पर कहानी के किरदार बदल रहे हैं।
खुशी की स्याही से लिखी है कुछ इबारत,
तो कोई कागज़ ग़म-ए-हयात से जल रहे हैं।
पीले ज़र्द पन्ने की कोने में पड़ी है सिसकती,
राज़ बेपर्दा होते ही हर इक सफ़ा मसल रहे हैं।
4th June/ Poem 23