किसान
किसान
है किसान वो बदनसीब
दर्द में जीवन जीता है
दिल में संजो कर वेदनाये
अश्कों को अपने पीता है
पेट भरे जो सबका खुद
ही भूखे पेट वो सोता है
अंदर ही अंदर पीर सहे
अपनी किस्मत पे रोता है
उसको भी सुख से जीवन
जीने का हक है
पर विधना ने उसके
कैसे लेख लिखे
जब सबके घर ख़ुशियों
की मने दीवाली है
तब उसके घर ग़म का
दीपक जलाता है
गर्मी वर्षा शीतल सहे
हर मौसम को
पर अपने ख़ुशियों
के मौसम को खोता है
नमन तुम्हें धरती के पुत्र हे
वंदन शिवम ये करता है
श्रद्धा भाव समर्पित करता
अभिनंदन ये करता है !!